डोर टू डोर कैंपेन- 3
डोर टू डोर कैंपेन- 3
आख़िर कुत्तों के वार्तालाप का असर पड़ा। उनके कुछ सियार और लोमड़ी जैसे मित्र कहने लगे- "बिल्कुल ठीक बात है, आप लोग चाहें तो कुछ भी कर सकते हैं। आदमी आपको बहुत मानता है। यहां तक कि इंसानों में जो चोर निकल जाते हैं उन्हें पकड़ने के लिए आपकी मदद ली जाती है।"उनकी बात से उत्साहित होकर एक बुजुर्ग से कुत्ते ने लोमड़ी से ही कहा- "तुम तो बहुत समझदार हो बहन, तुम्हीं कुछ बताओ कि हमें क्या करना चाहिए?"
लोमड़ी इस प्रशंसा से फूल कर कुप्पा हो गई, बोली- "भैया, जब इस जंगल में हम जानवरों की दुनिया में पंचतंत्र आ सकता है तो लोकतंत्र क्यों नहीं आ सकता?"
"मतलब?" उससे क्या होगा?" कुत्तों ने कहा।
"लोमड़ी बोली- अरे न जाने कितनी सदियों से यहां शेर ही हमारा राजा बना बैठा है, आदमियों की तरह क्या हम भी अब हर पांच साल में अपना नया राजा नहीं चुन सकते? तुम लोग तो आदमी के दोस्त हो, उसके बराबर ही काबिल हो, उसके संग कारों में घूमते हो, तुम्हें भी तो कभी मौक़ा मिले राजा बनने का?
कुत्तों का मन लोमड़ी की बात से बल्लियों उछलने लगा। मन ही मन सबके लड्डू फ़ूटने लगे।
ये बात सबको पसंद आई। सबका यही मानना था कि अबकी बार शेर को राजा के पद से हटाया जाए और उसकी जगह कुत्तों को ही जंगल का राजाघोषित किया जाए।
लेकिन ये इतना आसान न था। पहले तो जंगल में लोकतंत्र को लाना था फ़िर सबकी मर्ज़ी से यहां नया राजा चुनने की व्यवस्था करनी थी।सब ये भी जानते थे कि शेर इस बात को आसानी से नहीं मानेगा। पहले उसे इस बात के लिए राजी करना ही एक बड़ा काम था।काफ़ी सोच- विचार के बाद एक नन्हे प्यारे से पामेरियन को ये ज़िम्मेदारी दी गई कि वह किसी तरह शेर को समझा- बूझा कर इस बात के लिए तैयार करे।