Devkaran Gandas "अरविन्द"

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दादाजी की सीख

दादाजी की सीख

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श्याम की बोर्ड परीक्षाएं अब नजदीक आ गई थीं लेकिन वो तो पढ़ाई से दूर क्रिकेट खेलने में मगन रहता था दोस्तों के साथ । उसके पिता भी अबकी बार बहुत चिंतित हो रहे थे और उनकी चिंता भी तो लाजमी थी । गांव छोड़कर शहर जो आ गए थे बच्चो को पढ़ाने । 10 वीं क्लास तक प्राइवेट स्कूल में पढ़ा श्याम विज्ञान संकाय लेकर सरकारी स्कूल में एडमिशन के चुका था और उसे सरकारी स्कूल वाली आजादी कुछ ज्यादा ही रास आ गई थी । पढ़ाई लिखाई में भी होशियार था वो और माता पिता की इकलौती औलाद भी । पिछले वर्षों में अंक भी अच्छे आ रहे थे तो थोड़ा गुमान भी हो गया था श्याम को ।

एक बार उसके दादाजी आ गए थे गांव से उनसे मिलने । श्याम की इस लापरवाही को देख दादाजी को भी चिंता सताने लगी । उन्होंने श्याम को समझाया तो श्याम ने भी उनको उसी मद में कहा उसे कोई फैल नहीं कर सकता । दादाजी ने कहा बेटा अक्सर ज्यादा प्रशंषा पाने वाले गुमान में आ कर मंजिल से भटक जाते हैं लेकिन श्याम ने एक ना सुनी ।

अब श्याम के पेपर भी आ गए थे और वो अब केवल पास होने के लिए पढ़ने लगा क्योंकि पहले तो अपने ही घमंड में खेलता रहा था । जब परिणाम आए तो श्याम फैल हो चुका था और अपने घमंड पर पछता रहा था । अब उसको दादाजी की कहीं बातें याद आ रही थीं ।शर्म के मारे वो गांव भी नहीं जा पा रहा था ।

जब दादाजी को पता लगा तो वो फिर से शहर आए अपने प्रिय पोते से मिलने । उन्होंने श्याम को फिर समझाया कि अगर एक बार अकाल पड़ जाए तो किसान खेती करना नहीं छोड़ता , समझ लो तुम्हारे जीवन में भी इस बार अकाल पड़ गया । अब फिर से मेहनत करो और अबकी बार मेहनत करके अच्छे अंक लेकर आओ ।

श्याम ने दादाजी की इस बात को अपना गुरुमंत्र बना लिया और आज दादाजी की सीख के कारण श्याम प्रशासनिक सेवा में चयनित हो गया है ।


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