चलो कुछ लिखते हैं।।
चलो कुछ लिखते हैं।।

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चलो आईना देखते हैं
कितना वक़्त हो गया है खुद से मिले
चलो कुछ लिखते हैं।।
थोड़ा खुद को जानते हैं
इस रोज़मर्रा की भागदौड़ से
अल्पविराम लेते हैं
चलो इस बार थोड़ा रुकते हैं
चलो कुछ लिखते हैं।।
अपने तन मन को एक माला में पिरोते हैं
अपनी बातें, मुलाकातें, यादें, सौगातें
और रातें सब कह जाते हैं
चलो इनसे खुद को सजाते हैं
चलो कुछ लिखते हैं।।
कुछ तीखा तो कुछ खट्टा मीठा सा
तेरी सारी बातें चाशनी में डुबोते हैं
और यादें फिर से चखतें हैं
चलो कुछ लिखते हैं।।
वो जादुई संदूक फिर से खोलते हैं
उसकी चीजें कभी बिखेरते
तो कभी संजोते हैं
उनपे लगी जंग डिगाते हैं
चलो कुछ लिखते हैं।।