चलो,बुलावा आया है
चलो,बुलावा आया है
अक्सर हम गीत गुनगुनाते है ,कुछ कहावतें सुनते है और कभी कभी वे कहावतें, गीत _वास्तविक जीवन में चरितार्थ होते दिखाई देते है या महसूस होते है तो एक स्वप्न सा आभास होता है।
ऐसे ही अक्सर सुनते है धार्मिक स्थलों के लिए खासकर कि वहां कोई अपने आप नहीं जाता, वहां तो बुलावा ही होता है, ईश्वर की ओर से, तभी जाया जाता है।
मन सोचता था कि जब मुझ में भाव उठता है तो मैं जाता हूँ।
पर पिछले दिनों एक वाकया ऐसे हुआ कि जिसने मुझे इस सोच में डाल दिया कि वाकई में ईश्वर स्वयं ही बुलाते है दरबार में। मेरे साथ जो हुआ उसे देखकर तो मुझे अब ऐसा ही लग रहा है।
क्योंकि उस दिन न तो मन था मंदिर जाने का और न ही कोई योजना बनाई गई थी मन्दिर जाने की और न ही पता था कि मैं जहां खड़ी हूँ वहां कोई मन्दिर भी है।।
हुआ यूँ कि हम रिक्शा कर के मैट्रो तक पहुंचे हवा महल के पास और जैसे ही हम रिक्शा वाले को पैसे थमाने लगे तो वो कहने लगा कि उसके पास न तो खुले पैसे है और गूगल पे इत्यादि की सुविधा भी उसके पास नहीं है। हम बहुत हैरान हुए लेकिन फिर सामने नज़र पड़ी तो देखा कुछ फूल वाले बैठे थे तो सोचा उनसे पूछते है तो सबने खुले पैसे देने से इन्कार कर दिया। तो हमने सोचा चलो कुछ फूल खरीद ले ताकि किराया दे दिया जाए और हमने ऐसा ही किया।
अब ध्यान आया कि ये फूलो का क्या करेंगे ,तो थोड़ा नज़र घुमाने से समझ गए कि पास ही में मन्दिर है और हम यूँ ही गुज़र के जा रहे थे और अपने ईश्वर जी ने खूब तरकीब लड़ाई और हमें प्रणाम करने बुला लिया। लेकिन हमें ये बहुत अच्छा लगा ईश्वर का ये अन्दाज़ और दर्शन का भी बहुत आनन्द आया।