भाग्य का खेल (By Somyaa Hathi)
भाग्य का खेल (By Somyaa Hathi)
'राजेश्वरी अनाथ आश्रम' मेरा जन्म स्थान।वैसे तो कोई अनाथ आश्रम में पैदा नहीं होता किंतु मेरी माँ यहाँ काम करती थी और मेरे पैदा होते ही उनका निधन हो गया।तब से मुझे सब मनहूस मांगू बुलाते हैं।मेरा असली नाम मनीष है।मैं सात साल का शताब्दी नगर का नागरिक हूँ ।मैं अपनी जिंदगी से नफरत करता हूँ।
किंतु एक दिन मेरे इस पिंजरे में एक आजादी की किरण दिखाई दी।एक दंपति मुझे गोद लेने आई।
वाह ! भगवान ने मेरी सुन ली।ड्राइवर मुझे अपने नए घर तक ले गया।हम पहुँच गए ।कहाँ वह टूटा -फूटा अनाथ आश्रम और कहाँ यह महल? मैं फूला नहीं समाया।
मैं अंदर गया तो मैंने बहुत सारे लोगों को देखा।एक औरत मेरे पास आई। उसने बनारसी साड़ी, लाल बिंदी ,काजल, गजरा और बहुत सारे सोने के जेवरात पहने हुए थी। ववह मुझे अप्सराओं की रानी लगी जो मेरी जिंदगी के कोरे कागज़ पर अपनी ममता की दस्तखत करेगी।पानी की तरह मेरा मन शीत था।उन्होंने मुझे मेरा कमरा दिखाया।अब समझ में आया! यह तो नवाबों का खानदान है।पांच लड़कियाँ हंसती खिलखिलाती अंदर आईं। माँ ने कहा कि वह सब मेरी बहनें हैं। क्या! इतनी सारी बहनें! जीना वहाँ मुश्किल होगा यह तो मुझे पता था , लेकिन प्यार का भूखा इंसान इस सुनहरे अवसर को जाने नहीं देगा।