बचपन वाली शाम
बचपन वाली शाम
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सब कुछ तो है पहले जैसा फिर भी ना जाने क्यूँ मुझे चैन की नींद नहीं आती। सारे ऐशो आराम और प्यार तो है मेरे पास फिर भी ना जाने क्यूँ वो बेफिक्र नींद नहीं आती। सुबह भी जल्दी उठता हूँ रात में भी जल्दी बिस्तर पर गिरता हूँ, माँ खाना भी वही बनाती है पापा आज भी सबसे लाडला बना रखते है सब कुछ तो है पहले जैसा।
"सिवाय वो मेरी बचपन वाली शाम के"
सही मायनों में उस शाम में सुकून है, उस शाम में कहीं मेरी वो मीठी सी थकान है, जिसमे छुपी कहीं मेरी वो मुस्कान है। वो मुस्कान जो थक के आके बिस्तर पे लेट आँख बंद करते संग मुझे आया करती थी। सही मायनों में मुझे सुलाया करती थी।