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ईच्छाधारी लेखिका

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ईच्छाधारी लेखिका

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बैचेन मन

बैचेन मन

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लगभग सात हजार से ऊपर फोलोवर थे उसके ...हर सोशल साइट पर छाई रहती थी...हर शहर

...हर गली ..में उसकी आवाज में कवितायें... कहानियां गूजती थी...बस खामोश रहती थी तो वो अपने घर में..खनकती रहती थी उसकी चूड़ियाँ और पायल...

व्यापार के लियेे दूर बसा पति...और संस्कार की बेड़ियों से बंधी वो...चाहती तो थी..कि उसका ससुराल और मायका जाने कि वो भी है....इसी दुुनियााँ में...और साँस ले रही हैं उसकी कवितायें

वो निखार रही थी अपनी लेखनी...और लिख रही थी कुछ मन में तैरती कहानियाँ...मन बैचेन ही रहा... 

क्योंकि उसके अपनों ने उसे कभी लेखिका न कहा।


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