बादलों के पार
बादलों के पार
पीलू पतंग बहुत ही कलरफुल और खूबसूरत थी। एक लंबी सी लहराती दुम और उस पर बना स्टार उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहा था। पहली बार में ही माही को वह बहुत पसन्द आ गई। पापा ने माही की पसन्द को सराहा। माही को पीलू नाम ही भाया।अब माही और पीलू पतंग दोनों पक्की दोस्त बन गयीं।
हर शाम माही हिचके के मांझे पर पीलू पतंग को सवार करती और बड़ी कुशलता से उसे आसमान की सैर कराती। पीलू पतंग भी खुश होकर कभी हवा में अठखेलियाँ करती तो कभी तरह-तरह की कलाबाजियाँ दिखाती।
दूर आसमान में बादलों के पार पहुँच कर पीलू पतंग अपनी दोस्त माही की कार्य कुशलता पर मुग्ध होती।
" दिदिया! कितने सलीके से मुझे यहाँ दूर आसमान तक ले आतीं हैं"; पीलू पतंग बादलों से इठलाकर कहती।
बादलों से धरती की बाते करना और फिर नीचे आकर अपनी माही दिदिया को हवा की, आसमान की,बादलों की और तो और रास्ते में मिलते सभी पक्षियों की बातें बताती। दोनों एक दूसरे का साथ पाकर बहुत खुश रहतीं।
पीलू पतंग अब आजकल बहुत उदास रहती कारण कई दिनों से माही ने उससे दूरी बना ली थी। वह उसे छूना तो दूर उसकी तरफ देखती भी नहीं थी। पीलू पतंग ने हिम्मत करके माही से पूछ ही लिया कारण।
"टप,टप,टप"माही की आँखों से आँसू गिरने लगे।" पता है तुम्हें कितने महीनों से बारिश की एक बूँद न बरसी है। धरती, पशु-पक्षी, पेड-पौधे और हम बच्चे बारिश के आने की राह तक रहे हैं; पर बादल आकर बरसते ही नहीं।" माही बहुत दुःखी थी।
"दिदिया! तुम मुझे आसमान में बादलों के पास पहुँचा दो। मैं प्रार्थना करती हूँ उनसे बरसने की।" पीलू पतंग ने माही को उपाय सुझाया।
"चलो! ये प्रयास करके देखते हैं"माही पीलू की बात से खुश हुई।
अब माही ने सधे हाथों से धीरे-धीरे हवा के झोंकों के साथ उसे उँचा और ऊँचा कर ही दिया। थोड़ी ही देर में पीलू पतंग हवा से बातें करती बादलो के पास पहुँच गई।
"बादल काका! तुम झमाझम करके बरस जाओ न धरती पर। सब परेशान हैं। तुम्हारे बिना सब बेकार है। सब तुम्हारे आने की राह तक रहे हैं। बरसो न बादल काका" पीलू पतंग ने बादलों की खूब खुशामद की।
पीलू पतंग की बातें सुनकर बादलों की आँखें भर आई।वह तेजी से बरसने को तैयार हो गये। पीलू खुशी -खुशी घर की ओर आने लगी।
सहसा एक बूँद टपकी,टप्प!!टप्प!!माही का दिल जोरों से धड़का। वह जल्दी -जल्दी पीलू को वापस धरती पर लाने की कोशिश करने लगी।
बारिश की बूंदें पीलू के शरीर पर पड़ने लगीं पर वह हवा में कलाबाजियाँ खाकर नीचे आ रही थी।कभी हवा के थपेड़े इधर पड़ते तो कभी उधर। धरती तक आते-आते पीलू पतंग के दोनों कंधों में फैक्चर हो गया था। वह जगह-झगह से फट चुकी थी। माही का चेहरा आँसुओं से भर गया था। "मैं तुम्हें जल्दी ही अच्छा कर दूँगी" माही की आवाज रुँध गयी।
" दिदिया! देखो बादलों ने मेरी पुकार सुन ली। सूखी धरती पानी से सराबोर होने लगी है। व्याकुल पशु-पक्षियों के चेहरे पर मुस्कराहट लौट आई है। बच्चे बारिश में भीग-भीग कर कितने खुश हैं। मैं फिर मिलूँगी" ऐसा कहकर पीलू पतंग ने सदा के लिये अपनी आँखें मूँद लीं।
नैतिक मूल्य- दूसरों के लिए जीना सबसे बड़ा धर्म है।
