अंगूर का बगीचा
अंगूर का बगीचा
एक किसान था| उसका बहुत बड़ा बगीचा था| अपने बगीचे की रखवाली बहुत अच्छी तरह से करता था |मजाल है कि उसके बगीचे की तरफ कोई आंख उठा कर देख ले अगर कोई भी उसके बगीचे की तरफ आंख उठाकर देख भी लेता था तो वह कभी क्रोधित हो जाता था, तो कभी वह गालियों की बौछार करता था, तो कभी डंडे से मारने की धमकी देता था ,तो कभी आँखे बड़ी –बड़ी करके डराता था| उसके इन्हीं सब पागलपन को देखकर वहां के रहने वाले लोग उस पर हंसते भी थे और उसके पीठ के पीछे उसे चिढाते भी थे | लेकिन उसे इन सभी बातों का कोई भी फिक्र नहीं था | उसे केवल इस बात की चिंता थी कि मैं इस लदे हुए अंगूर के बगीचों में खूब सारे अंगूर इकट्ठा करके बाजारों में व्यापारियों को बेचूंगा और वहां से जो रुपए मुझे प्राप्त होंगे उससे मैं एक बड़ा- सा ट्रैक्टर खरीद लूंगा और उनसे मैं अपने खेत में और भी ज्यादा फसल और भी ज्यादा फल बोऊँगा जिसके वजह से मुझे और भी पैसे मिलेंगे और मैं बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा फिर मेरे पास बड़ा मकान, गाड़ी, नौकर ,जमीन सब कुछ होंगे इन सभी के सपने हर रोज सोचता था और यहां तक कि यह सोचता था कि जब मैं बड़ा इंसान बन जाऊंगा तब इन सभी गाँव वालों को मैं देख लूंगा सब की जमीन मैं खरीद लूंगा इस प्रकार के न जाने कितने सपने अपने आंखों में पाल रहा था|
एक दिन दोपहर के समय इन्हीं सपनों में था| उन्हीं के बारे में सोचते -सोचते न जाने कब उसकी आंख लग गई पता हि नहीं चला | कुछ समय के बाद जब उसकी आँख खुली तो उसने देखा कि उस बगीचे में चार चूहें घूस आए थे| ये चूहें जो अंगूर नीचे की तरफ लटक रहे थे| वे कूद –कूदकर अंगूर खाते जा रहे थे | फिर क्या किसान को आया क्रोध और उसके बाद थोड़े पत्थर उसके पास गिरे थे उसे देख उठाकर जोर से उनकी तरफ़ फेका चूहें तो भाग गए|
लेकिन अब किसान यह सोचने लगा | “आज मेरी आंख लग जाने के कारण यह चूहें आकर अंगूर खा रहे है अगर ऐसा फिर कभी हो गया तो मैं बड़ा आदमी कैसे बनूँगा नहीं ... नहीं ऐसा नहीं हो सकता |” किसान ने एक तरकीब सोची उसने अपने बगीचे की तरफ चारों तरफ बिजली के तार बांध दिए| जिससे अगर कोई भी जानवर वहां पर दाखिल हो तो वह बिजली के तार के झटके से वही मर जाए |यहाँ किसान काफी स्वार्थी भी होता जा रहा था | उसके इस व्यवहार से उसकी पत्नी बहुत नाराज रहा करती थी |क्योंकि किसान के इस आदत के कारण कोई भी औरत उससे बात नहीं करती थी | वह कई बार किसान को समझाने का प्रयत्न करती थी | लेकिन किसान के बड़े आदमी बनने की चाह कुछ समझना ही नहीं चाह रहा था |बेचारी थक हार कर क्या करती |
दूसरे दिन भोर होते ही किसान बगीचे की तरफ़ निकल रहा था | कुछ नाश्ता भी नहीं किया जब पत्नी ने कहा “रुक जाओ! जरा सूर्य भगवान् को तो निकलने दो| तब चले जाना | कुछ खा लो | लो लाई ,गुड खा लो | आज कल बिनुवा को भी दुलार नहीं करते हो वह भी मुझसे शिकायत कर रही थी कि बाबू इतने भोरे कहा जाते है |”लेकिन किसान के बड़े आदमी बनने की लालच में कहा बच्चा और कहा पत्नी सुध |
उसने पत्नी से कहा “ठीक है ज्यादा ज्ञान ना दो हमें जब देखो बकबक करती रहती है’ ठीक है दोपहर में खाना और बिनुवा को लेकर आ जाना आज अंगूर का व्यापारी आने वाला है मोल भाव तय करना है बड़ा जमींदार बनाना है मुझे इस गाँव का|”
तभी पत्नी बोल पड़ी देखो “ईश्वर ने हमे बहुत कुछ दिया है एक प्यारी बेटी, घर, सब है |”
किसान बोला “जमींदार तो नहीं हूँ ना |”
“ ओह ! कौन समझाए तुम्हें तुमने जो बिजली के तार खेत में बांधे हो ना वो निकलवा दो वर्ना कभी कुछ घटना घट गई ना तो बस लेने के देने न पड़ जाए |”
किसान ने कहा “ ... देखो दिमाग ना ख़राब करो चलता हूँ दोपहर में खाना लेकर चले आना |जब देखो किट –किट करती रहती है |”
किसान चल देता है |दोपहर में पत्नी खाना लेकर जाती है और अपनी बेटी बिनुवा को भी | बेटी अपने पिता को देख कर खुशी से उसके पास भाग कर जाती है और गले लग जाती है |
किसान अपनी बेटी से बहुत प्यार करता था |उसे दुलारा और अपने हाथो से बेटी को खाना खिला रहा था | तभी अंगूर का व्यापारी आ गया और किसान बेटी को गोद में लिए बगीचे के अंदर प्रवेश कर रहा था |
तभी पत्नी ने कहा ‘कि इसे मुझे दे दो इसको अंदर मत ले जाओ|’
लेकिन किसान ने हमेशा की तरह पत्नी को डांट दिया और बोला ‘सामने जाकर मड़ई में बैठो|’ ‘मैं थोड़े देर में आता हूँ |’ ‘यह भी देखे इसके पिता जमींदार बनाने जा रहा है क्यूँ बिटिया| आ चल|’
अपनी बेटी को गोद में लिए किसान व्यापारी को सब अंगूर दिखाने लगा वह काफी खुश था कि आज उसके सभी अंगूर के अच्छे मोल मिलेंगे और इस ख़ुशी में वह बेटी को गोद ने नीचे उतार कर अंदर के काले अंगूर को भी दिखाने लगा | तभी बेटी चलते हुए बिजली के तार पास आ गई और फिर क्या बिजली के झटके ने कब बेटी के प्राण पखेरु हो गए ना तो किसान को पता चला न नहीं उसकी पत्नी को | अंगूर बेचने के चक्कर में वह यह भी भूल गया कि उसके गोद में उसकी बेटी थी और बगीचे से जब वह आ गया |
पत्नी ने किसान को बाहर निकलते देखी लेकिन उसके गोद में बच्ची को न देख वह बोली ‘बिनुवा कहां पर है |’
किसान बोला ‘अरे देखो !वही बगीचे में मैंने नीचे गोद से उतार दिया था |जाओ देखो वह खेल रही होगी ‘
| पत्नी बगीचे में जैसे ही अंदर जाती है उसे बिनुवा नहीं दिखाई देती है वह किसान को आवाज लगाती है और किसान भी आकर बोलता है ‘अरे! यही तो बगीचे के बीच में गोद से उतरा था |’ सभी तरफ दोनों देखने लगते है | तभी अचानक पत्नी की नजर बगीचे की अंतिम छोर की तरफ़ पड़ती है जहाँ पर उसकी बेटी बिजली के छटके के कारण शरीर ठंडा पड़ गया हो गया था | और मुँह में छाग यह सब देख किसान की पत्नी चीख़ चीखकर छाती पी –पीटकर ...रोने लगी .... ओं मेरी गुड़िया.....|
किसान यह सब देखता रहा और लालच में बिजली के तार लगवाने का फल उससे क्या मिलायह सोच वह भी चीख़ पड़ा बिनुवा ह ...ह ..ह ....|
