ऐ मेरे जीवन साथी... भाग 1.
ऐ मेरे जीवन साथी... भाग 1.
इस नाम को जप करते हुए सितारा भगवान की आरती करती है. जैसी आरती संपन्न होती है वह अपने कमरे में चली जाती है वह भी आरती लेकर| क्योंकि इसके लिए एक कारण था. और वो कारण है सितारा के पिता जो 9 महीने पहले कुछ कारण से मर गए थे. लेकिन सितारा उनकी तस्वीर के पास जाती है और कहती है... "मैं नहीं जानती कि आप कहां है लेकिन मैं जरूर इतना बता सकती हूं कि आप जहां भी है, वहां से जल्द घर लौट आएंगे. मैं आरती इसलिए कर रही हूं कि आप सकुशल रहे."
तब सितारा की मां अंजली देवी आती है और कहती है: "सितारा तुम पागल हो गई क्या? अरे मरे हुए इंसान को या उसकी तस्वीर को कोई पूजा करता है क्या?"
तब सितारा गुस्से से कहती है: "खबरदार मां.! अगली एक बार भी पापा को मरे हुए कहे तो! ! मेरे पापा मरे नहीं है जैसे कि आप सोचते हैं. अगर जैसे आपकी बात में वह मेरे भी है तो मेरे दिल से वह जीवित है और हमेशा रहेंगे. उनको मेरे दिल से कोई नहीं मार सकता ना ही आप. ..! मुझे आशा है कि मैं उन्हें जल्द से जल्द ढूंढ लूंगी और आपके सामने खड़ा कर दूंगी.. यह इस सितारा का वादा है. और आप ही जानते हैं कि सितारा के वादे कभी झूठ नहीं होते और ना ही हुई है."इतना कहकर सीतारा वहां से जल जाती है.
सितारा रोते हुए आकर अपने कमरे के दरवाजे बंद कर लेती है और रोने लगती है. क्या हो गया है सबको? क्यों सब पिता को मरे नजर में देखते हैं? जो कोई जो भी कहे मुझे पिता जी को जल्द से जल्द ढूंढना होगा... ताकि मैं अपने आप को सही साबित कर पाऊँ...
अंजली देवी अपने आप से कहती है: "पागल हो गई है यह लड़की. इसकी जिद को देखने के बाद मुझे ऐसा लगता है कि पिछले 9 महीने का जो राज था वह जल्द से जल्द खुलने वाला है सबके सामने... नहीं... मैं ऐसा नहीं होने दूंगी।"
आखिर क्या राज है जो अंजली देवी और सितारा के बीच जुड़ी है? क्या सितारा के पिता सच में मरे हैं? क्या है इसका पीछे का राज? देखेंगे अगले अध्याय में...
