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विजय कुमार प्रजापत

Children Stories

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विजय कुमार प्रजापत

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अ डे वेल स्पेंट

अ डे वेल स्पेंट

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कविता की जो एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है। आज उसकी छुट्टी है तो उसने यह तय किया है की आज अपने दोस्तों के साथ पास के नेशनल पार्क जाया जाए।

उसने झट से रूबी, चन्दन और नेहा को फोन मिलाया और उनसे चलने के लिए पूछा। रूबी तो मान गयी पर चन्दन और नेहा को कुछ काम था तो उन्होंने खेद प्रकट करते हुए मना कर दिया। खैर थोड़ा काम तो रूबी को भी था लेकिन कविता का साथ देने और मन रखने के लिए उसने हाँ कर दी। कविता ने कहा रूबी तुम तैयार हो जाओ मैं तुम्हे तुम्हारे घर से ही पिक कर लूँगी।

रूबी ने उत्साहित होकर ओके कहा और कविता ने फोन काट दिया। कुछ समय बाद कविता अपनी स्कूटी से रूबी के घर आ पहुँची और घर के नीचे से ही रूबी को आवाज़ दी। रूबी हाथ में जूते लिए बालकनी में आई और वहीं से बोली में बस पांच मिनट में आयी। यह बोलते ही रूबी ने जूते पहने और कविता के पास पहुँच गयी। दोनों स्कूटी पर बैठी और नेशनल पार्क के लिए चल दी। कुछ 20 मिनट के सफर के बाद कविता और रूबी अपनी मंज़िल पर पहुँच चुके थे। स्कूटी को पार्किंग में खड़ी कर टिकटघर से टिकट लेकर दोनों अंदर चली गई और नेशनल पार्क की तार लगी हुई गाड़ी में सैर पर निकल गयी।

वहाँ पर उन्होंने कई तरह के पक्षी और जानवर देखे। कविता अपनी इस छुट्टी का अपनी सहेली और इस हरियाली के साथ आनन्द ले ही रही थी की तभी उसकी नज़र एक पेड़ पर बैठे दो चिम्पांजियों पर पड़ी जिसमे से बड़ा वाला जो कर रहा था छोटा वाला उसी की नक़ल कर रहा था। बड़ा वाला अगर खुजा रहा था तो छोटा वाला भी खुजा रहा था। इसी तरह अठखेलियाँ करते वक़्त बड़ा वाला गिरा तो छोटा जान बूझ कर ही वैसे गिर गया। यह सोचकर के मुझे भी वही करना है। इसे देखकर कविता खुद को रोक नहीं पाई और पेट पकड़कर हँसने लगी। रूबी ने उसे ऐसा करते देखा तो पूछा क्या हुआ इतना क्यों हँस रही है। पहले कुछ देर तो कविता हँसती ही रही फिर उसने पूरा वाकिया रूबी को बताया तो रूबी भी अपनी हँसी नहीं रोक पाई। दोनों ठहाके मार मारकर हँसे।

इतने में शाम हो गयी और कविता और रूबी दोनों रूबी के घर के लिए रवाना हो गए। रास्ते भर वो दोनों अपने कॉलेज के दिनों में की मस्ती की बातें याद करती रही। बातों बातों में रूबी का घर आ गया। कविता रूबी को उसके घर छोड़कर अपने घर के लिए रवाना हो गई। घर पहुँचकर उसने रोज़ की तरह अपनी डायरी में अपने दिन के बारे में लिखा। पर रोज़ जिसे लिखने में कम से कम एक पन्ना भर जाता था वो आज एक लाइन में ही खत्म हो गया। उसने लिखा था "अ डे वेल स्पेंट"।


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