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ये मामला खुद में बड़ा दिलचस्प है कि "कोई न आये न जाये-मग़र फिर भी दिल में पाबन्द हो जाये".....
जब न खिड़की है न दरवाज़ा फिर भी किरायेदार आये और कब्ज़ा जमाये तो फिर ये तो वही बात हुई कि....
न हम चले न वो चले फिर भी चलते गए,
न जाने कब दिल मिले और मिलते गये।
दिल हमारा रफ्ता-रफ्ता उनके होते गए,
वो"बेचैन" पा गये चैन और हम खोते गए।।
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