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वतन की धूल...

वतन की धूल उड़ उड़ कर, बदन को चूम लेती है। आज़ादी एक पीढ़ी का जिश्मों-जां-खून लेती है। कुछ तिफ़्ल जो खुश हैं, गुलामी ज़ंजीर में। नीचता ,वतन परस्ती का ज़ज़्बा छीन लेती है।

By S R Daemrot (उल्लास भरतपुरी)
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