“
उसने दूर से देखा था उसे
ज्यादा अपने से सुखी पाया
तज कर सहज सुख अपने
वह कृत्रिम सुख के पास आया
भ्रम था उसे मृग मरीचिका सा
दूर से लगे उसे ढोल सुहावने थे
फिर रुपया उसने बहुत कमाया
सहज सुख की कीमत दे करके
अब परिवार को प्यारा है
वह नहीं, रुपया उसका
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”