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आवश्यकता मात्र इतनी सी होती है कि उनसे हम अपनी अपेक्षाएं थोड़ी कम कर लें।
तब वही परिजन, रिश्तेदार, मित्र एवं परिचित आदि, जिनसे शिकायतें रहीं होती हैं, उनसे हमें वे शिकायतें नहीं रह जाती हैं और
उनके होने से हम स्वयं को धन्य अनुभव करने लगते हैं।
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