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संसार में संशाधनों एवं लोगों की प्रचुरता है।
कुछ के विमुख होने पर हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है।
संभव शीघ्रता से हमें वह भ्रम दूर कर लेना चाहिए कि
वे संशाधन या लोग ही हमारे लिए अनिवार्य नहीं हैं।
हमें उपलब्ध अन्य विकल्प खोजने चाहिए ...
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”