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परोपकार तो...

परोपकार तो इससे बड़े होते हैं फिर भी यह छोटा परोपकार तो हमें अपने स्वभाव में लाना चाहिए कि अशिष्ट शब्दों या व्यवहार से अपमानित करके हम, किसी का स्वाभिमान आहत न करें। स्वाभिमान का आहत होना दुखदाई होता है। किसी को यह दुःख नहीं पहुँचाकर एक तरह से हम उसे सुख ही देते हैं। अपने कार्य से किसी को सुख पहुँचाना, परोपकार है .... rcmj

By Rajesh Chandrani Madanlal Jain
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