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पाश्चात्य संस्कृति अनुरूप, नारी-पुरुष में जीवन अवसरों में अंतर दूर किए जाने चाहिए। साथ ही नारी-पुरुष के चरित्र भारतीय संस्कृति अनुरूप होने चाहिए। जिस दिन अधिकांश मनुष्यों द्वारा, ये दोनों बातें मान्य और निभाई जाने लगेगी, उस दिन मानव सभ्यता उत्कर्ष पर होगी।
और तब परस्पर वैमनस्य और किसी के दुःख के कारण, मानव निर्मित नहीं रहेंगे।
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