STORYMIRROR

मैंने चाहा...

मैंने चाहा कि अफसाना लिखूं इश्क़ पर, लेकिन क़लम खो गई कहीं, तेरी यादों में। मैंने सोचा कि ग़ज़ल लिखूं हुस्न पर, लेकिन स्याही ख़त्म हो गई, तेरे बे-वक़्त जाने में। मैंने इरादा किया कि एक नज़्म गुनगुनाऊं तेरे नाम पर, लेकिन हवा का एक तेज़ झोंका काग़ज़ को अपने साथ कहीं उड़ा के ले गया वीराने में। मैंने चाहा कि मर्सिया लिखूं अपने दिवान खाने में, लेकिन सारे लफ़्ज़ ले गई तुम अपने आशियाने में। ~ प्रेम

By Premnath Yadav
 62


More hindi quote from Premnath Yadav
0 Likes   0 Comments
0 Likes   0 Comments
0 Likes   0 Comments
0 Likes   0 Comments
0 Likes   0 Comments