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किसी उच्च आदर्श के लिए जब कोई, अपने हितों का बलिदान देकर संतोष कर रहा होता है तब देखने वाले लोग उसे ‘मूर्ख’ मान रहे होते हैं।
ऐसे उसे मूर्ख समझने वाले 'लोग' यह नहीं जानते हैं कि उनकी ऐसी 'समझ' से उसका ‘संतोष’ एवं 'आदर्श का अस्तित्व' अप्रभावित रहता है।
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