“
किसी दल, संस्था या नेता के प्रति वफादार होना गलत नहीं है।
लेकिन महसूस करो तुम वहां बोलने के लिए कितने स्वतंत्र हो। क्या वहां तुम्हें अधिकार और विकास की मांग उठाने की इजाजत है।
तुम्हारी वाणी का वहां क्या महत्व है? या वाणी पर पहरा है।
अगर ऐसा है तो आजाद भारत में तुम आज भी गुलाम हो।
खड़े हो। गुलामी की हर विचारधारा से मुंह मोड़ो।
अपने अधिकार के लिए आवाज उठाओ।
-निशान्त कुमार सक्सेना
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