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जाने ये...

जाने ये कैसा मंजर दिख रहा है मुझे अपना ही घर जलता दिख रहा है हर रूह इंसाफ पुछ रही है लहु से इंकलाब सींच रही है कही शहेर जल रहा है कही लाशें बिछ रही है जाने ये कैसा मंजर दिख रहा है मुझे अपना ही घर जलता दिख रहा है

By Mohammed Khan
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