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हमारी आस्थाओं, मान्यताओं को लेकर हमें इतना ही करना चाहिए कि
हम दूसरों को इनका अच्छा होना बताएं। फिर उन पर छोड़ दें कि वे इस बारे में क्या सोचते हैं।
हमें ऐसा कट्टर कभी नहीं होना चाहिए कि
हम दूसरों को भी हमारी ही आस्था, मान्यता और विश्वास के समर्थन करने हेतु जोर जबरदस्ती से बाध्य करें।
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