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बुराई करते हुए प्रत्यक्ष में अपना हित समझना, हमारा भ्रम होता है।
ऐसे बुराई कर्म अन्य के लिए दुष्प्रेरणा देने वाले होते हैं।
इनसे फैलती बुराइयाँ,
हम पर भी आशंकाएं उत्पन्न करती हैं।
जो परोक्ष रूप से हमारा भी अहित करतीं हैं।
हम कम आनंद में जीवन जी पाते हैं
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”