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बकरा, मुर्गा, अन्य मवेशी एवं मछली आदि जैसी निरीह दशा मनुष्य की भी होती है।
वह कितना ही बलशाली, प्रभावशाली, धनवान, लोकप्रिय, प्रसिद्ध, बुद्धिमान या सुन्दर क्यों न रहा हो। काल के सामने वह अकेला होता है। कोई चाहे भी तो उसका रक्षक, सहायक या साथ नहीं हो सकता है।
अपनी इस परिणति का ज्ञान कर के मैं जीव दया और उनके प्रति आदर रखता हूँ।
अर्थात हर जूझते प्राणी के जीवन हेतु हृदय में सद्भावना रखता हूँ।
राचमजै
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