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अगर मेरी दुनिया वह होती जिसमें मैं, नितांत अकेला होता तो उदर पोषण से सुखी, भूख से दुखी, शारीरक चोट से पीड़ा एवं स्वस्थ होने पर प्रसन्न रहा करता।
मगर जग का स्वरूप ऐसा है जिसमें मुझे, अन्य प्राणियों का संयोग-वियोग मिलता है। इससे मैं अनेक गुणा, सुखी, दुखी, प्रसन्न और पीड़ा में होता हूँ।
तब मुझे लगता है काश! मेरा व्यक्तित्व वह होता कि मैं, अन्य सभी के सुख और प्रसन्नता का कारण बना करता
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