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अभिमान के बारे में बुरी बात यह है कि यह उत्कर्ष पर पहुँचना आरंभ तब करता है जब हमारे सामर्थ्य, क्षमताएं क्षीण होने लगते हैं।
तब हमारे अभिमान की तुष्टि देखना हमारी आदत बन गई होती है जबकि हम क्षीणतम अवस्था में होते हैं।
हमारे अभिमान को बार बार लगती ठेस तब हमारी वेदनाओं में वृद्धि करती हैं
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