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अभी अंधेरा जरा घना है सुहानी लेकिन सुबह भी होगी।
उदासी और दुःख के बीच थोड़ी हंसी खुशी की वजह भी होगी।
निराश जीवन से हो न ऐसे, यूं जी कि जैसे हुआ नहीं कुछ -
अभी है कुछ रार भाग्य से भी, मगर कल उससे सुलह भी होगी।
रिपुदमन झा "पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक
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