“
आपकी हसी हमे कुछ याद दिला जाती हैं,
गुजरे जमाने का वो अहसाह दिला जाती हैं।।
कभी गलियों से जब , हम निकला करते थे,
आपके ही चर्चे हुआ करते थे।।
वही ताज़गी, वही कसिस और वही भोलापन,
तन सिकुड़ चुका मेरा, पर कोमल द्रवित मन।
चाह रखता हैं फिर वही दिवास्वप्न दे
”