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आलोचनाएं जो सर्वथा (निस्संदेह) हित करतीं हैं वे आत्म-आलोचनाएं ही होती हैं। आत्म-आलोचना आरंभ में आत्म-विश्वास कम कर देने वाली प्रतीत होती हैं।
तथापि आत्म-आलोचक स्वभाव हो जाने पर, ये हमारे व्यक्तित्व को परिष्कृत करने के साथ साथ अंततः हमारे आत्म-विश्वास को उत्कर्ष पर पहुँचा देती हैं।
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