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ये झूठे आडंबर

ये झूठे आडंबर

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ये झूठे आडंबर, महिमा मंडित वक्तव्य

किस काम का,

जो सिर्फ जबान पर है बस नाम का,

लेश मात्र भी गर आत्मसात हो पाता,

अन्तर्मन प्रफुल्लित और काया विशुद्ध

हो जाता...


व्युत्पत्ति न हो पाई अन्तर्ज्ञान का,

कारण, चक्षुओं पर बँधे थे पट्टी

अभिमान का,

किसी का अभिमान न रहा, न रहेगा,

रखे विनम्रता की भावना, वही चलेगा...


परित्यक्त किया जगवालों ने,

प्रतिकार किया, अपमान किया,

अनभिज्ञ थे अपने ही अन्तर्मन से,

अनजाने में खुद का ही घोर

अपमान किया...


सृष्टि के कण-कण में ज्ञान का आलोक है,

विवश हूँ कहने पर व्यक्तियों में इसका

विलोप है,

अनुशासन का निवास जीवन में न

विद्यमान है,

पुनः कहते हैं कि हृदय में सबके लिए

सम्मान है...



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