Revolutionize India's governance. Click now to secure 'Factory Resets of Governance Rules'—A business plan for a healthy and robust democracy, with a potential to reduce taxes.
Revolutionize India's governance. Click now to secure 'Factory Resets of Governance Rules'—A business plan for a healthy and robust democracy, with a potential to reduce taxes.

Ramkishore Upadhyay

Others

2  

Ramkishore Upadhyay

Others

उत्स का क्षण

उत्स का क्षण

1 min
251


सर्द हवा थी 

हर तरफ बर्फ ही बर्फ

लिहाफ़ को छोड़कर 

बाहर टहलने के बहाने से निकल गए थे

कुछ मेरे अहसास 

पछुवा हवा चली बरसों के बाद 

झील में पड़ी काई को 

कंकड़ से नही हटाया गया  

कहीं बेवजह लहरों की नींद न टूट जाये 

बारिश फिर तेज हुई

दादुर मोर सब बोलने लगे 

उनकी तन्द्रा टूटी तो मिलकर पुकारने लगे 

बस फिर किसी ने काई को छेड़ दिया 

काई

कहने लगी खोई वस्तु को खोजने में इतना वक्त नही लगाते 

हम आदमी की तरह जिंदगी भर किसी का इंतज़ार नही करती 

लहरें 

कहने लगी की किनारे लगा देती तुम्हारी कश्ती 

हम नाखुदा को नहीं ढूंढती 

अब भविष्य में जिस्म की गर्मी अहसासों को देना मत भूलना

रिश्तों की झील से काई छट गई  

और मैं लहरों के बाहुपाश में जकड गयी


Rate this content
Log in

More hindi poem from Ramkishore Upadhyay