तूने मुझको भगवान कहा!!
तूने मुझको भगवान कहा!!
बहुत परीक्षाएं दी मैंने भी
किये जतन, विषपान किया,
ऎसे ही नहीं तूने मुझको भगवान कहा!!
सोचा था बैठूंगा मैं भी कुछ क्षण
प्रकृति गोद में, जब थक जाऊँगा
पर शांति नहीं है यहाँ कहीं भी
बस प्रतिशोध, आक्रोश है,
भूल हुई मुझसे वो क्या ?
जब प्रकृति का निर्माण किया
भूल यही मेरी अब जाना
मैने इसको इंसान दिया !!
भूल सुधारूँगा मैं अपनी
निश्चय कर आया कई बार फिर
करे प्रयास पथ दिखलाने के
गीता का भी ज्ञान दिया !!
हठी बहुत है मेरा बालक
नहीं समझता आग्रह को
मैने प्रेम दर्शाया प्रतिपल
प्रतिपल इसने अभिमान किया !!
राग द्धेष और युद्ध के लिए
नही रचा था ये संसार
मेरी ही कृति छलती अब मुझको
मेरा ही अपमान किया !!
मैं पालनकर्ता, प्रहार नहीं है मेरा ध्येय
मेरी रचना पर ये कैसा अंकुश ?
उसपर व्यंग्य तुम्हारा कि
तुमने इसको विज्ञान दिया !!
मैं निःशब्द देखता बस
मौन लगाये एकटक
कि कब रोकोगे इस तांडव को तुम
कब समझोगे मेरी बात
रुक जाओ !
इससे पहले मिट जाये अस्तित्व तुम्हारा ही
कुछ और नहीं आग्रह है बस तुमसे........
उसको नहीं देख पा रहा मिटता मैं
जिसको मैने ही प्राण दिया !!
बहुत परीक्षाएं दी मैंने भी
किये जतन, विषपान किया,
ऎसे ही नहीं तूने मुझको भगवान कहा!!
