तुम बदल रहे? या त्यौहार?
तुम बदल रहे? या त्यौहार?
हार साल की तरह,इस साल भी दिवाली का इंतज़ार रहा।
जिस तरह पूरा अयोध्या,श्री राम का इंतज़ार में था,
वैसे मैं और मेरा परिवार को दिवाली का इंतज़ार रहता है
इस साल भी माँ बहुत बेचैन थी ,
"सफाई कैसे होगी ?"
क्या बनायें ?
"क्या नया लायें इस बार ?"
मेरी माँ ने फिर एक बार घर ऐसा सजाया
जैसे स्वयं श्री राम यहाँ बसते हों।
जिस तरह माँ अपना शृंगार करती हैं,
वैसे ही माँ ने हमारा घर और आंगन सजाया।
इस साल भी बाजार इतना खूबसूरत था ,
जैसे नयी दुल्हन हो।
बाजार से दिए, कंदील,लाइटिंग,रंगोली,कपड़े,पूजा सामान,
मिठाई और पटाके सब पापा और मैं लाये।
पापा ने फिर इस बार बी अपने बचत के खाते का हिसाब बिगाड़ा ,
और मुस्कारते बोले
"दिवाली के लिए ही बचाये थे।"
बहनो ने कुछ रंग भरके आंगन में रंगोली बनायी
और अपने घर के अंधेरो को दियों से मिटाया।
हर साल की तरह इस साल भी, टिमटिमाती हुइ बत्तीयां जलाईं,
लाइट लगा के और कंदील से पूरा घर उजाला कर दिया।
इस साल भी लक्ष्मी माता की स्थापना की उसी उल्हास के साथ
जिस तरह हर साल करते हैं।
हर साल की तरह इस साल भी खूब मिठाई आयी ,
और हम सबने मिल्कर खायी
हर साल की तरह इस साल बी वही ख़ीर बनी थी ,
जिसका स्वाद सिर्फ़ पिछली दिवाली पे था।
इस साल भी पूरा परिवार साथ बैठा फिरसे घुलामिला ,
वही मज़ाक,वह एक बार एक बार.
पर
इस खुशियों वाली दिवाली में क्या
"तुम खुश थे "?
कुछ लम्हे याद नहीं आते दिवाली के ?
दिए ,लाइट ,पूजा ,मिठाई ,और फ़र्सन से क्या
तुम खुश हुए ?
जैसे तुम बचपन में हुए थे ?
दिवाली पे तस्वीर तो बहुत ली होगी ,
पर लम्हे हमेशा बचपन में ही कैद हैं ना।
क्यों रुक गए अब
बचपन वाली बात लगी ना ?
५० -१०० माँ बाप से रुपैये की ख़ुशी दिवाली पे
शायद आज हज़ारो भी नहीं देते।
पूजा के बाद मिठाई खाने का और फटाके फोड़ने का सुकून ,
शायद आज किसी चीज़ में ना मिले।
अपनी बहन को रंगोली में मदद करके ,
वह ख़ुशी कहाँ,
जो बचपन में मिली थी ?
क्या बदल रहा है
तुम ?
कि
त्योहार ?
