" तो अलग हो तुम"
" तो अलग हो तुम"
"तो अलग हो तुम"
बारिश का गिरना, हवाओं का चलना, जब 'एहसास' लगे,
'ख़ास' की ख़ासियत देखने मैं कोई नयी बात नहीं
किसी 'आम' मैं तुम्हें जब कुछ 'ख़ास' लगे ......
"तो अलग हो तुम"
आँधी का चलना, बादलों का गरजना, ओलों का गिरना,
खड़ी 'फ़सल' को देख,
'किसान' का हाथ जोड़ के तरसना
ऐसे मैं तुम्हारा ख़ुशी मनाना, पकोड़े खाना ग़र 'बकवास' लगे ......
"तो अलग हो तुम"
हाथी के दाँत, खाने के और दिखाने के और कहावत सार्थक प्रतीत होती है,
झूठे 'साधों' के डेरे मैं जब कुँवारी कन्याओं की अस्मत की लूट होती है,
एक ही थैली के चट्टे-बट्टे ये राजनेता, दलीलें सब इनकी झूठ होती हैं
ऐसी दु
र्गति को देख जब मन मैं टीस उठे, ना भूख लगे ना प्यास लगे......
"तो अलग हो तुम"
कुत्ता-बिल्ली-हिरण मरे तो इतना शोर क्यों मचाते हो?
मुर्ग़ा-बकरा खाकर क्यों ख़ामोश हो जाते हो
ख़ून तुम्हें जब बस ख़ून लगे,
सबका 'माँस' तुम्हें जब सिर्फ़ 'माँस' लगे .......
'तो अलग हो तुम'
'श्री राम चन्द्र ' कह गए सिया से,
ऐसा 'कलियुग' आएगा,
'माँ-बाप ' की घर मैं क़द्र नहीं ,
पर घर का कुत्ता 'काजू' खाएगा।
Audi-आड़ी (car) कोठी-कूठी, बँग़ले-वँग़ले होते होंगे,
जहाँ 'जिस्मों' की बस भूख नहीं,
'इंसान' तुम्हें कोई ख़ास लगे....
"तो अलग हो तुम"