पता ही नहीं चला
पता ही नहीं चला

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मैं बैठा रहा और ज़िंदगी चलती चली गई,
कब हम छोटे से बड़े हो गए
पता ही नहीं चला!
इतनी चीज़ों का अनुभव लेते हुए हम इतने बड़े हो जाएंगे,
किसी को पता था भला?
स्कूल में टीचरों की डांट खाते और घर में मां की,
वो पांच बजने का इंतजार करते-करते
आज समय से आगे निकल गए,
पता ही नहीं चला।
हर साल नई क्लास में जाने की खुशी,
नई टीचर से मिलने की खुशी,
ना जाने इस साल कौन नया दोस्त मिल जाए
इस बात की खुशी।
स्कूल में छुट्टी होने का इंतज़ार करते-करते,
स्कूल कब खत्म हो गया?
पता ही नहीं चला।
दोस्तों को चिढ़ाना,
उन्हें खेल में चुनौती देना,
और फिर उनकी गलतियां निकालना,
सुबह स्कूल में मज़े करना
और शाम में मैदान में खेलना,
स्कूल की उस ट्रिप में गाते-गाते
वो सफर कब यहां तक आ गया?
पता ही नहीं चला।