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Jigar Parihar

Others

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Jigar Parihar

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मंजिल

मंजिल

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मन की सुनसान गलियों से गुजर रहे थे, 

घना अंधेरा था, 

दूर सपनो के पहाडों पे मंजिल नाम का, 

दिया जल रहा था, 

हम चले जा रहे थे, 

सामने सोच और समझदारी के दोस्त मिले थे, 

ख्वाहिशों की नाव बनाकर हमने,

मुश्किलों के समन्दर को पार किया, 

बस अब सपनो के पहाड़ पर चढ़ना था, 

इस बार महेनत के मुसाफिर का साथ पाया, 

सपनो के पहाड़ पर चलना शुरू किया, 

काफी लम्बे समय बाद पहाड़ की टोच पर पहुंचे, 

और मजिलं के उस रोशनी भरे दिये को पाया।


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