कितनी मरीचिकाओं से घिरी मैं ख़ुद को ख़ुद में ढूँढा करती मैं कितने अलग से निरपेक्ष से तुम मुझ में रह क... कितनी मरीचिकाओं से घिरी मैं ख़ुद को ख़ुद में ढूँढा करती मैं कितने अलग से निरपेक्ष...