मैं हूँ शब्द और आज़ाद हूँ
मैं हूँ शब्द और आज़ाद हूँ
मूक बन रहे समय की,
कांपती पुकार हूँ,
चुप नहीं रहूँगा,
मैं हूँ शब्द और आज़ाद हूँ।
प्रण तो हैं अनेक,
एक भीष्म का पता नहीं,
कृष्ण का प्रदेश है तो,
कृष्ण का पता नहीं।
पांडवों के प्रान्त में,
मैं द्रौपदी की त्रास हूँ,
चुप नहीं रहूँगा,
मैं हूँ शब्द और आज़ाद हूँ।
मैं राम का वचन भी और,
सीता का चरित्र हूँ,
बस वाक्य ही नहीं,
मैं स्वयं एक 'व्यक्तित्व' हूँ।
मैं सती का सतीत्व,
और शम्भू की हुंकार हूँ,
चुप नहीं रहूँगा,
मैं हूँ शब्द और आज़ाद हूँ।
दास्ता से थी ग्रसित,
जो दो सदी से,आज भी,
दासियों-सा हो रही है,
वो प्रतीत आज भी।
मैं उसी वसुंधरा की,
वेदना का सार हूँ,
चुप नहीं रहूँगा,
मैं हूँ शब्द और आज़ाद हूँ।
जल रहें है सैकड़ों में,
शैशव राज्यमार्ग पर,
ढो रहे हैं ईंट,
वो किताब के स्थान पर।
माँ का ये दरिद्र रूप,
देख शर्मसार हूँ,
चुप नहीं रहूँगा,
मैं हूँ शब्द और आज़ाद हूँ।
मैं सहोदरा किसी की,
हूँ कहीं अर्धागिनी,
पूत हो गये कपूत,
माँ हूँ वो अभागिनी।
पथ-भ्रमित हैं लोग तो,
मैं चण्डी का अवतार हूँ,
चुप नहीं रहूँगा,
मैं हूँ शब्द और आज़ाद हूँ।
