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Sukhbinder Kaur

Children Stories

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Sukhbinder Kaur

Children Stories

माता पिता का सफर

माता पिता का सफर

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मैं यादों को शब्दों में पिरो रही हूं,

बचपन से अब तक,

सब आंखों के सामने नजर आता है,

कभी मां की गोद में,

कभी पापा की उंगलियों को पकड़े हुए,

खुद को मैं कहीं बैठे देख रही हूं।

देख रही हूं, जब खेलते हुए गिर गई थी,

तब पापा ने कैसे दौड़ कर बांहों में उठा लिया था,

मां ने, पापा ने लेकर सीने से लगा लिया था,

दोनों फिर घंटों मुझे बहलाते रहे थे,

कभी गुड़िया दिखा कर, तो कभी खुद पापा घोड़ा बनकर,

मेरे सोने तक उस दिन दोनों, न जाने क्या-क्या बन गए थे।


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