STORYMIRROR

Sahil Verma

Others

3  

Sahil Verma

Others

माँ

माँ

1 min
922

माँ मैं फिर से वही जिंदगी जीना चाहता हूँ

जब पैदा हुआ आँख खुली वही चेहरा

देखना चाहता हूँ

जब पहली बार माँ बोला फिर से वही

बोलना चाहता हूँ  

तेरी उँगली पकड़ कर चलना सीखा,

मैं माँ आज फिर तेरा हाथ थाम कर चलना

चाहता हूँ 

भूखा हूँ कई दिनो से, माँ आज तेरे एक

निवाले को तरसता रह जाता हूँ 


थक चुकी है ये आँखें तुम्हें ढूंढ ढूंढ कर,

माँ फिर से तेरा चेहरा देखना चाहता हूँ

ना जाने वो कौन सी जगह है जहाँ तू है

सुना है तारों के पार एक जहां है वहां तू है

झिलमिलाते देखे है कई तारे मैने माँ

लगा तू वो है 

माँ काश तू फिर से आ पाती मुझ को

लोरी सुना पाती 

अपने आँचल में मुझ को सुला जाती

रात को उठ बैठता हूँ अक्सर

ना जाने तू किस हाल में होगी


रोता हूँ अक्सर तुझे याद कर के

फिर तेरे हँसते चेहरे को याद कर

दिल को बहला लेता हूँ  

जानता हूँ अब तू भी झूठ बोलने लगी है 

बोला था आऊँगी लौट कर अब तू ना

आती है 


इंतज़ार ना जाने अब कब खत्म होगा 

बैठा हूँ घर में तेरे इंतज़ार में माँ 

ना जाने अब कब ये इंतज़ार खत्म होगा


Rate this content
Log in

More hindi poem from Sahil Verma