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Priti Soni

Inspirational Others

4.8  

Priti Soni

Inspirational Others

क्या तुम समझते हो ?

क्या तुम समझते हो ?

2 mins
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क्या तुम समझते हो ?

उस दिन के उजालों मे भी मेरा बेख़ौफ न चल पाना ,

भीड़ भरी इन सड़को पर गुजरती हुई इन राहों पर ,

कोई शख्स मेरे जिस्म को , न छु जाए ,

इस बात से मन ही मन घबराना , 

क्या तुम समझते हो ?


क्या तुम समझते हो

मेरा दर्द?अरे! जिस्मानी नहीं रूहानी है,

यह न जिस्मों पे दिखती है,न आँखों से बहती है ,

न होंठो से कहती है ,

बस जिस्म के किसी कोने में पड़ी तड़पती सी रहती है  , 

पर क्या यह बाते क्या तुम समझते हो ?


क्या तुम समझते हो ?

किसी अनजान शख्स का ,

उन रास्तों से गुजरते मेरे जिस्म को ताकना ,

मेरे जिस्म के हर कोने को अपनी आँखों से नापना ,

और इन सब को देख मेरे जिस्म के ज़र्रे ज़र्रे का काँपना ,

शर्म से भरी इन आँखों को थामना

क्या तुम समझते हो ?


क्या तुम समझते हो

रात के उस अँधेरे में ,

चाँद की उस रोशनी में ,

लौट रही वापस घर को ,

उन सुनसान रास्तों में , 

पल भर को सहम सी जाती हूँ ,

अपने आपको इन अनहोनी से रोकती हूँ ,

पर क्या तुम मेरी बातों को हकीक़त मेे समझते हो ,

क्या तुम समझते हो !


क्या तुम समझते हो ?

हर रात अपने कमरे के किसी कोने मे बैठे ,

उन गुजरते पलों को याद कर आँखों से बस आंसू बह जाते हैं ,

होंठो की मुस्कुराहटों के पीछे छुपे दर्द चीख बनकर निकल जाते हैं ,

पर फिर हर दिन यही सहन है यह सोच कर हम इन आंसुओ को रोक नहीं पाते हैं ,

पर क्या फायदा इन बातों का 

क्या तुम समझते हो !!


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