कोयल की बोली
कोयल की बोली
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सुबह सबेरे उठकर देखा
अमराई पर कोयल रानी
डाल डाल पर गीत सुनाये
मधुर सुरीली बानी।
न जाने वह किसे बुलाये
कुहु-कुहु स्वर-रागिनी
सारी धरती खिल उठे
जब देखे कोयल काली।
कुहु-कुहु के शोर ने जाने
अनजाने में दिया संदेश
जल बिन हम भी फिरे है मारे
जल है जीवन प्यारे।
फुदक-फुदक कर पीने जल को
आई कोयल रानी
चिडियाँ भी चहचहाकर बोली
मैं भी सखी हूँ प्यासी।
चल फिर मिलकर प्यास बुझाएं
मस्त पवन में फिर खो जाये
पंख पसारे आजादी के
विशाल गगन में फिर उड़ जाएं ।