कौन सच्चा, कौन झूठा
कौन सच्चा, कौन झूठा
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कौन सच्चा, कौन झूठा
यह फर्क किसने जाना है।
झूठ, फरेब और मक्कारी का तो
आजकल का जमाना है।
मेहनत के बल पर ही
सबने कुछ ना कुछ पाना है।
किस्मत की लकीरों से
कहां लिखा जाता फसाना है।
नौजवानों को तो
बुरे संस्कारों ने ही मिटाना है।
नशा तो सिर्फ
एक मात्र बहाना है।
भगवान को भूलता
आजकल का जमाना है।
पाप पुण्य का ज्ञान तो आखिर
अब किसने समझाना है।
कौन सच्चा, कौन झूठा
यही तो इस कलयुग का फसाना है।