झलक गाँव की
झलक गाँव की
घर में मिट्टी का चूल्हा है
हर शाम दिया इक जलता है ,
और लगती हैं बाहर चौपालें
अनगिनत ठहाकों की बातें ।
हर शाम को सर पर घास लिये
हरिया काका जब आते हैं फिर
देख के सारे पशु हमारे
आनंदित हो जाते हैं ।
हैं लगे डाल पर मीठे फल
जिधर नज़र ये जाती है ,
है मनमोहक ये फूल सुहाने
डाली डाली मुस्काती है ।
उस नदी की बहती धारा में
गर्मी में खूब नहाते हैं
रहते हैं अपने यारों में और
मस्त मगन हो जाते हैं ।
हैं खड़ी फसल ये लहलहाती
ये घने मेघ आहिस्ता कुछ कहते हैं
छा कर बरसे घनघोर घटा
ये मोर नाचते कहते हैं
कितना सुन्दर उपवन यह
पक्षी भी कहते फिरते हैं ।
बस्ता लेकर स्कूल को जब
इक कतार में बच्चे जाते हैं
देख राहगीरों को वो
सुन्दर सा मुस्काते
हैं काँच की कोई जगह नहीं
मिट्टी में सब ये रहते हैं ।
इनके भी कुछ प्यारे सपने हैं
ये होते बिल्कुल अपने हैं
हर सुबिधा ना इनको मिल पाती
तो दूर खड़े रह जाते हैं
और सिर्फ हौसला हाथ लिये
सपनो से वंचित रह जाते हैं ।
ना छोड़े हिम्मत ये अड़े रहें
अपने पथ पर ये डटे रहें
आये जो मुश्क़िलें लाख कभी
ये उनसे भी लड़ जाते हैं और
मिले जो मौका वाजी का
परचम अपना लहराते हैं ।
ये मिट्टी की खुशबू है साहब
जिसमें हम महके जाते हैं
और इतने मनमोहक दृश्य को हम
इस कलम से लिखते जाते हैं ।।