झांकी
झांकी
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चेहरे पे कितने चेहरे हैं,
क्यूं दिलों पे इतने पहरे हैं।
मुस्काने सभी झुठी हैं,
हर रूह कुछ टूटी है।
कभी डुबती थी दुनिया जिनमें,
वो आंखें आज सूखी हैं ।
लफ्ज़ तो वही है होंठों पे,
पर बोलियां अब रुखी हैं ।
जिंदा तो सब है दुनिया में,
पर जीना आज भी बाकी है।
दिखावे की इस जिंदगी की,
ये तो बस झांकी है।
