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Satnam Singh

Others

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Satnam Singh

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इतना सा ही हूं अभी

इतना सा ही हूं अभी

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अपने आप को मिट्टी से

सोना होते देखा है,

लोगो को सोना फेंकते

और कांच उठाते देखा है,

दुनिया का मुंह खुलते देखा है,

अपनों को नज़रे झुकती देखी हैं,

इतना सा ही हूं अभी!


कुछ रिश्तों को बिगड़ते देखा है,

कुछ रिश्तों को संभलते देखा है,

बिना पहियों की गाड़ियों को

ज़िन्दगी की रेस जीतते देखा है,

इतना सा ही हूं अभी!


कुछ अंधेरी रातों को देखा है,

कुछ अंधेरे सवेरे भी देखे हैं

इंसान के हर बहाने को देखा है,

बदलते इस ज़माने को देखा है,

इतना सा ही हूं अभी!


मुकरते कुछ अपनों को देखा है,

टूटते कुछ सपनों को देखा है,

बदलती ज़ुबान को देखा है,

बादलों से ऊंची उड़ान को देखा है,

इतना सा ही हूं अभी!


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