"हालात हमारे गांव का"
"हालात हमारे गांव का"
कोई कैसे समझ पाएगा,
हालात हमारे गांवों का।
टूटी - फूटी सड़कों का,
मिट्टी के राहों का ।।
1. खाने को रोटी नहीं, न ही घर में दाना है,
रूठी किस्मत हमसे ये दुनिया अनजाना है।
कहीं - कहीं कट रही है रातें खुली आसमान के नीचे,
किसी - किसी का पीपल तले ठिकाना है ।।
बिलख रहे हैं बच्चे दूर कहीं किनारे !
खाली - खाली हैं घर के बर्तन सारे !!
कौन सुनेगा दुखड़ा अब इन माँओं का....
कोई कैसे समझ पाएगा,
हालात हमारे गांवों का।
टूटी - फूटी सड़कों का,
मिट्टी के राहों का ।।
2. तपती धूप में खो गई है कहीं हरियाली,
उजड़ा - उजड़ा सब है घर है बिल्कुल खाली ।
टहल रहे हैं बच्चे नंग - धडंग गलियों में,
दिख रही है चेहरे पर उनके तंगहाली ।।
दूर तलक गर्मी, बागों में उदासी है !
सावन के मौसम में भी, धरती प्यासी है !!
छीन रही है धूप पेड़ों से हक़ छावों का.....
कोई कैसे समझ पाएगा,
हालात हमारे गांवों का।
टूटी - फूटी सड़कों का,
मिट्टी के राहों का ।।
3. झुकी हुई है कमर फिर भी मेहनत करता है,
थक कर चूर है इतना कि गश खाकर गिरता है।
दिन की गर्मी में बहाकर अपना खून - पसीना,
किसी तरह घरवालों का पेट भरता है ।।
है इस उम्मीद में कब बदलेगा इसका नसीब !
कब हटेगा उसके माथे से ये अल्फाज गरीब !!
किस - किस से करेगा, बयां दर्द अपने बांहों का....
कोई कैसे समझ पाएगा,
हालात हमारे गांवों का।
टूटी - फूटी सड़कों का,
मिट्टी के राहों का ।।
