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Aditi Khera

Others

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Aditi Khera

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हाल-ए-दिल

हाल-ए-दिल

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परसों मुलाकात हुई उनसे,

हाल पूछा तो झट से बोले "ठीक हूं मैं"।

अरे रूल ही ऐसा है ना,

तो कैसे कह देते 'वीक हूं मैं'?


कुछ जवाब तो बस फ्लो में ही निकल जाते हैं,

थैंक यू- वेलकम, हैप्पी दिवाली- सेम टू यू, हाउ आर यू- फाइन थैंक यू...

फाइन थैंक यू। यह कंपलसरी जवाब तो हम बच्चों को खुद सिखाते हैं


क्यों, क्यों वह नॉट वेल हो नहीं सकता,

क्यों ब्रेव बच्चा है तो रो नहीं सकता?

टोक टोक के आंसू उसके हम खुद दबाते हैं।

इमोशन कम नहीं होते,

वह बस खुद से सहना सीख जाते हैं।


ऐसा नहीं है कि सुनने के लिए लोग नहीं हैं,

और उनसे बात करना भी इजी़ है।

पर यह आजकल का ट्रेंड नया नहीं है,

हम सालों से सोशल डिस्टेंसिंग में बिजी हैं।


यकीन ना हो तो सोच कर देखो,

आखरी बार कब 'सीधी बात' कही?

या शायद कहना भी चाहा तो,

अपने ही लोग अवेलेबल दिखे नहीं।


यह कैसी आदत हो गई है सबकी,

खुद ही खुद में सहने की।

चलो ऐसा माहौल बना दें,

कोई हिम्मत कर सके असली हाल कहने की।


मत पूछो किसी से 'कैसे हो तुम',

 वह फिर से ठीक हूं कह देगा‌।

 उल्टा यह पूछो "खुश हो क्या"?

 शायद वह फिर से बह देगा।


ज्यादा नहीं बस थोड़ा ही,

बदल लें अपने तरीके।

हाल पूछे तो पूरे दिल से पूछे

और दिल से ही हाल सुनना भी सीखें।

सुनना भी सीखें।



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