दिल्ली
दिल्ली
आरज़ू-ए-दिल और दयार-ए-यार है दिल्ली
किसी पाकीज़ा मोहब्बत की यादगार है दिल्ली !
ज़ौक़ ने सिखाई इसे हक़-गोई इसलिये
आज भी हक़ की परस्तार है दिल्ली !
अब इसकी फ़िज़ाओं में उर्दू नज़र नहीं आती
ये गर्दिश-ए-वक़्त देख अश्कबार है दिल्ली !
दामन में हज़ारों ग़म होने के बावजूद
नज़र आती बहुत ख़ुश गवार है दिल्ली !
वो अपनी बेटी की इज़्ज़त बचा नहीं पायी
यूँ ख़ुद से बहुत शर्मसार है दिल्ली !
दाग़, मीर, ग़ालिब से सुख़नवर दिये जिसने
सुख़नवरी का वो तस्नई आबशार है दिल्ली !
वक़्त-ए-तवील से जो मोहब्बतें मिलती रहीं इसको
साये में उनके आज भी सरशार है दिल्ली !
दार-उल-हुकूमत-ए-हिंदुस्तान होने की वजह से
हमारे लिये बाइस-ए-इफ़्तिख़ार है दिल्ली !
तारीख़ जानना है तो चले आओ यहाँ पर
हर सल्तनत-ए-हिंद की निगेहदार है दिल्ली !
ज़मन आज भी अपनी बुलंदियों के सबब
इस जहान में आला मेयार है दिल्ली !